पवित्र भूमि भारत में, उत्तराखंड तीर्थ जहाँ, सुर सरि गंगा, हर की पौड़ी हरिद्वार है ॥ सप्त सरोवर सप्त, रिषि जहाँ तय कियो, ता सों तपोवन नाम, या को प्रचार है ॥ इसी तपोवन में, श्री गीता कुटिगो -शाला, गीता मंदिर अन्नक्षेत्र, लंगर भण्डार है ॥ देव भाषा संस्कृत, विद्यालय वृन्द आश्रम जहाँ, ऐसी देव भूमि को हमारा नमस्कार है ॥
"मैं अकेला ही चला था जानवे मंजिल की और लोग मिलते ही गये और कारवां बनता गया"
मुमुक्षमण्डल ट्रस्ट श्री गीता कुटीर तपोवन हरिद्वार एवं समस्त भारतवर्ष में सेवारत आश्रम, मंदिर, गौशाला, संस्कृत महाविद्यालय पाठशाला, एवं वृद्धाश्रमों के संस्थापक एवं संचालक पूज्यचरण सदगुरुदेव श्री स्वामी गीतानन्द जी महाराज भिक्षु : द्वारा इस संस्था का प्रारम्भ सन 1973 में हुआ । पूज्यचरण श्री सदगुरुदेव जी इससे पूर्व श्री गीता कुटीर ,स्वर्गाश्रम ,ऋषिकेश हिमालय में टप साधना में रत रहते हुए निवाश किया करते थे । कभी नंगे पावँ, कबि काष्ठ चरण पादुका से, फलाहार व्रत के साथ की पैदल यात्रा किया करते थे। तपस्वी - जीवन, वस्त्र के रूप में तात एवं पात्र के रूप में नारियल के खप्पर में, भिक्षाटन करते हुए, जैममानस को त्याग और वैराग्य का मूरत उपदेश दिया करते थे । घने जंगलो, झाड़ियो एवं तीर्थों में तपस्यारत ब्रह्मनिष्ठ पूज्यचरण सदगुरुदेव श्री महाराज प्रति जनता जनार्दन की अटूट शरद एवम विशवास के साथ उमड़ती भीड़ के आवागमन देखकर, झाड़ियों में रह क्र तपस्वी जीवन व्यतीत करने वाले सन्तों ने वन अधिकारियों द्वारा मिलने वाली कठिनाइयों की वजह से जंगल वाले उन संतो को हटा रहे थे, उन्होंने प्रार्थना किया की आप हमारे लिये कुटिया बनाने केलिये थोड़ी जगह ले दें । पूज्यचरण श्री महाराज जी का जीवन में कुटिया के लिए कुटिया न बनाने का संकल्प होते हुए भी, संतो की प्रार्थना से इसी तपोवन की भूमि पर सप्त कुटियों के रूप में इस आश्रम का शुभारंम्भ किया ।