फिर उन्ही संत महापुरुषों की सायं कालीन भिक्षा की असुविधा को देखकर क्योंकि उन्हें भोजन के लिये बहुत दूर जाना पड़ता था । पूज्य चरण सदगुरुदेव श्री महाराज जी ने वर्ष 1973 में उन संत महापुरुषों की सायंकालीन भिक्षा से अन्नक्षेत्र श्री गीता कुटीर, तपोवन, हरिद्वार का श्री गणेश किया ।
जैसे - जैसे दिन, महीने, वर्ष बीतते गये, संत महापुरुषों की संख्या बढ़ती ही गयी । आज आश्रम का यह रूप जो आप के सामने दृश्यमान हैं तथा सेवा कार्य अविराम बढ़ते ही जा रहे हैं । यह आश्रम योजनाबद्ध नही अपितु आवश्यकता की पूर्ति करते ही इस रूप में प्रस्तुत हुआ है । उन संतो द्वारा की प्रार्थना से प्रारम्भ हुए इस अन्नपूर्णा भण्डार में आज प्रतिदिन लगभग 900 तथा पर्वों के दिनों में हज़ारों की संख्या में संत भोजन प्रसाद पाते हैं । अन्नक्षेत्र में हरिद्वार, ऋषिकेश के दिन ही नहीं अपितु समस्त भारतवर्ष में किसी भी प्रांत के, सम्प्रदाय के अखाड़े के संत हों उन्हें श्रदा व आदर पूर्वक भोजन कराया जाता है । संतों को समय समय पर पात्र, वस्त्र, कम्बल, चाय, चीनी दक्षिणा आदि द्वारा भी परितुष्ट किया जाता है ।
हज़ारों की संख्या में भोजनार्थ प्रवेश हेतु आश्रम के मुख्य द्वार पर खड़े सन्त महापुरषों |
पंक्ति में बैठकर आनंदपूर्वक भोजन पाते सन्त महापुरुष |
पाकशाला में आता गूंधने की विद्युतचालित मशीन दाल चावल पकाने के लिए विशाल कूकर, रोटी बनाने वाली मशीन जो की एक घन्टे में 800 रोटी तैयार कर देती है । आलू छीलने की मशीन तथा आटा पीसने की चक्की आदि उपलब्ध है ।